Written by Pooja Kumari
मैं परिवर्तन पुस्तकालय, बिहार से फ़रवरी 2023 में जुड़ी उस समय मुझे पुस्तकालय से जुड़ी कोई कामों की जानकारी नही थी और ना ही मैं कोई कोर्स की थी, ऐसे में मुझे पुस्तकालय के काम करने में दिक्कत होती थी, क्योकि मुझे किताबों की उतनी समझ नही थी साथ-ही-साथ बच्चों के साथ कैसे सत्र लेना, कैसे सत्र योजना बनानी है, कैसे उनसे बातचीत करनी हैं कुछ नही पता था फिर अप्रैल माह में पुस्तकालय से जुड़ा एक परिवर्तन में कार्यशाला हुआ जिस कार्यशाला में 13 राज्य से लाइब्रेरियन भाग लिए थे, मैं भी भाग ली थी | उस समय ज्यादा कुछ नही फिर भी कुछ-कुछ पुस्तकालय के कामों को समझ गई थी, और मैं कर भी रही थी पर थोड़ी बहुत परेशानी अभी भी थी | फिर मैं बूकवोर्म के LMS (Library Mentoring Support) मीटिंग से जुड़ी | उससे मुझे बहुत कुछ सिखने को मिला | तब तक मैं पुस्तकालय के बहुत से कामों को समझ चुकी थी, बच्चों के साथ भी कैसे सत्र लेना है इसके बारे में भी जानकारी हो गई थी |
उसके बाद वही कार्यशाला जो की अप्रैल 2023 में हुआ था फिर फरवरी 2024 में आयोजित हुआ जिसमे मेरी मुलाकात सुजाता मैम से हुई हालाकि पहले वाले कार्यशाला में भी हुई थी लेकिन इतने गहराई से बातें नही हो पायी थी | जिसमे उन्होंने बताया कि बच्चें पुस्तकालय तो आते है लेकिन वो अभी किताबों से नही जुड़े है इसलिए मुझे और सिखने की जरुरत थी ताकि मैं अपनी योजना को अच्छे से बना पाऊ और बच्चों को ज्यादा से ज्यादा किताबों से जोड़ सकूँ | तब हमारी बूकवोर्म के साथ अप्रैल 2024 से मेंटरिंग मीटिंग शुरू हुई | जिसमे मुझे बहुत कुछ सिखने को मिला और अभी भी मैं सिख रही हूँ | जिससे मेरे और मेरी लाइब्रेरी में काफी बदलाव आये | जैसे कि मैं खुद से किताबों से योजना प्लान करने लगी मेंटरिंग के दौरान मिले प्लान को भी स्कूल, समुदाय और लाइब्रेरी में करने लगी कभी-कभी ऐसा होता था कि योजना अच्छी रहती थी, लेकिन सत्र अच्छे से हो नहीं पाता था वहीँ कभी-कभी बहुत अच्छा सत्र आयोजित हो जाता था | फिर धीरे-धीरे अच्छा होने लगा | शायद अच्छा होने का ये भी वजह था कि जो भी प्लान मिलता उस कार्य-योजना के अनुसार ही अपने सत्र का आयोजन करती थी | और जैसा भी सत्र जाता उसपर हमलोग सोचते, विचार करते क्या अच्छा गया, क्या चुनौतियां आई और उसे ठीक करने की जरुरत है इस पर चर्चा करते|
मेंटरिंग के दौरान मुझे दूसरी लाइब्रेरी के लोगो से मिलने का मौका मिला | जिसमें मैं दीक्षा, मिलिका से मिली जो बूकवोर्मकी लाइब्रेरी में काम करते है| उनकी भी लाइब्रेरी को समझी | उन्होंने भी अपने अनुभव साझा किये कि बच्चों के साथ कैसे सत्र ले ? बातचीत कैसे करे ? इन प्रश्नों के तह तक जाने के बाद मेरी समझ अपने कामों को लेकर और पुक्ता होते चली गयी | जिससे मुझे काफी मदद मिली |
साथ ही साथ लाइब्रेरी अच्छा कैसे दिखे ये भी हमने सिखा जिसमे मैंने बच्चों के लिए पढ़ने का एक कोना अपने लाइब्ररी में बनाया | बच्चों ने किताबों का अस्पताल भी बनाया जो कि बच्चों के लिए बिलकुल नया था | इसे देख कर बच्चों को बहुत अच्छा लगा | बच्चें वहां जाकर जैसे मन वैसे पढने लगे, फटी किताबों को अस्पताल में रखने लगे ऐसे ही हमने बहुत कुछ सिखा | इस मेंटरिंग के द्वारा मुझे लगता है कि मैं बुक डिस्प्ले करना बहुत अच्छे से सिख गई | शुरुआत में मुझे बहुत परेशानी होती थी कि थीम क्या ले, कैसे डिस्प्ले को आकर्षित बनाया जाय | जिसमें मुझे इस मेंटरिंग से मदद मिली, डिस्प्ले करने लगी और डिस्प्ले बच्चों को बहुत आकर्षित करने लगी | बच्चों के भी प्रतिक्रिया आने लगे और डिस्प्ले से किताबें भी बच्चें घर ले जाने लगे एवं मैं हर महीने अलग-अलग थीम पर डिस्प्ले करने लगी | जिसके बाद अब मुझे लगता है कि मैं अच्छें से बुक डिस्प्ले कर लेती हूँ और मैं चाह रही हूँ की इस मेंटरिंग से आगे मैं लाइब्रेरी गतिविधि कैलेंडर अच्छे से बनाना सिख जाऊ |
मुझे उम्मीद है की आगे भी इस मेंटरिंग से मुझे बहुत कुछ सिखने को मिलेगा | इसके लिए मैं सबसे पहले परिवर्तन संस्था, बूकवोर्म पूरी टीम, सुजाता मैम, जनेफर मैम, प्रीति जी, आनंदिता जी को धन्यवाद करती हूँ जिनके वजह से यह संभव हो पाया |