Written by Yuga Addak, Library Facilitator, Kalpakta Education Foundation
मेरा नाम युगा है और मैं कल्पकता वाचनालय सिर्सि, जिल्हा नागपूर (महाराष्ट्र) में पिछले 3 साल से पुस्तकालय सुविधाप्रदाता का काम कर रही हूं | सबसे पहले मैं अपने बारे में कूछ बताना चाहती हूं | मैं एक छोटे से गाव से हूं, मेरी पढाई मराठी माध्यम स्कूल से हुई | शादी करके सीर्सी आई ओर गृहिणी बनके घर पर रहती थी | पढी लिखी होते हुए भी घर पर बैठी थी | घर के सभी लोग काम करने खेत पर जाते थे लेकिन मुझे खेतं के काम नहीं आते थे इस कारण मैं मैं दिन भर घर पर रहती थी तो सबके नजर में निठली थी | फिर अचानक से कोरोना आया, लॉक डाऊन शुरू हुआ | सब की जिंदगी अचानक रुक सी गई | सबके लिये कोरॉना काल बहुत मुश्किल गया पर मेरे लिए घर से बाहर निकलने का अवसर लेकर आया |
तब मैं कल्पकता पुस्तकालय से जुडी | बचपन से लेकरं अब तक स्कूल की किताब देखी थी, पर जब मैं पहली बार कल्पक्ता गई तब में अचंबित हो गई | ऐसी भी किताब होती हैं ये मुझे पहली बार पता चला | ओर हमारे गाव में भी पहला ऐसा पुस्तकालय शुरू हुआ है जहा छोटे बच्चे के लिये कहानियाँ की किताब हैं | गांव के सब लोगो के लिये ये नया ओर अलग था | वैसे ही मेरे लिये भी ये सब नया था |
बालसाहित्य क्या है? ये कल्पकता जा कर समझी | पुस्तक गतिविधि, चित्र पढ़ना, चित्रकारी, कहानी पढ़ना ये सब भी किताब से होता हैं ये मैने कल्पकता से जुडने के बाद जाना | ओर यहाँ से मेरा सफर शुरु हुआं | बच्चो के साथ काम करने की चाह थी और कल्पकता टीम का कदम कदम पर सहयोग था इस कारण मै आज यहां तक पाहुंचीओर मेरा आत्मविश्वास बढा |
कुछ दिन पहले मैं गोवा जैसे बडे शहर अपनी देढ साल की बच्ची को लेके प्रशिक्षण के लिये गई | मेरे लिये बाहर जाना, वहां रहना, नये नये लोगो से मिलना, बात करना, ये सब अनुभव नये ओर अविस्मरणीय थे | मुझे यहा तक पहुचने ओर ये अनुभव देने के लिये तोलेश दादा ओर सचिन दादा का बहुत सहयोग था | गोवा जाने के सफर की शुरुवात लाइब्रेरी मेंटरिंग एंड सपोर्ट (LMS) से हुई | मेरा पहला LMS सत्र अक्टूबर महीने में था | उस सत्र की शुरुवात कला सत्र से हुई थी | मन में पहले से ऑनलाइन सत्र का डर था, उसमे कला सत्र मै ओर डर गई | पर सत्र के अंत तक मेरा डर थोडा कम हूआ | उसके बाद उषा ताई का बुक टॉक का सत्र हुंआ, उसमे बुक टॉक क्या हैं, कैसे करें, उसकी योजना पर विस्तार से बातचीत हुई और बुक टॉक की समझ ओर बडी | इसी तरह हर सत्र में नई गतिविधि, नई जाणकारी, नया अनुभव, उत्साह, उत्सुकता, खेलं इन सबका ज्ञान मिला और अनुभव आया |
सत्र के दौरान हुई कुछ गतिविधि हम पहले भी लेते थे | जैसे रीड अलाउड बुक टॉक, ड्राइंग, पेंटिंग आदि पर Lms सत्र के बाद इन सब में बदलाव हुये | बच्चो को अब किताब और उसकी कहाणी प्रभावित करती है | पहले मै किताब कैसी हैं, कितनी बडी हैं , चित्र कैसे हैं, ये देख के रीड अलाउड के लिये चुनती थी | पर अब किताब का चयन करते समय विषय मध्य बिंदू रहता है और उसके आसपास योजना चलती है | जैसे उस विषय संबंधित चर्चा, कहानी में किसके बारे में बात कर रहे हैं, कहानी कहां की हैं, कब की हैं, कहानी का शीर्षक इस पर विचार विनिमय करके योजना बनाती हूँ | पूर्व गतिविधि को कहाणी से जोडना, सवाल जवाब इन सब की भी पूरी तयारी करने की कोशिश करती हुं | ओर ये सब बदलाव के कारण बच्चे भी कहानी में रुची रखते है | ओर सत्र के बाद खुद को भी खुशी मेहसुस होती हैं | ये सब बदलाव Lms सत्र से हुए |
पुस्तकालय सत्र में जैसे बदलाव हुए उसी तरह के बदलाव मुझमे भी हुए | मैं पहले थोडी डरपोक थी | पर अब मेरा आत्मविश्वास बडा | शुरुवात में मैं हर बात से घबराती थी | जैसे किसी से मिलना, बात करना, नये लोगो के सामने पुस्तकालय के सत्र लेना, बच्चो के साथ खेलना, गतिविधि लेना ये सब डर अब थोडा कम हुंआ | इसी कारण मैने बुकवॉर्म टीम के सामने रीड अलाउड किया ये मेरे लिये बहुत बडी बात थी | अब बच्चे भी मुझ से घुलमिल गये और तो और अब गांव में भी मेरी एक अलग पहचान बनी | मुझे बच्चे, उनके माता – पिता ओर बाकी गांव वाले भी ‘लायब्ररी की ताई’ इस नाम से बुलाते है | ये मेरे लिये गर्व की बात है | जिसकी कोई पहचान नहीं थी आज उसे पुरा गाँव ताई कहके बुलाता हैं | इससे अंदर से खुशी महसुस होती है |
इसी तरह ऑनलाइन सत्र, चैट रूम, कला सत्र, ज़ूम मीटिंग इन सब में सहभागी होना ये भी मेरे लिये नया था | कल्पकता टीम के लिये सुजाता मॅडम के रीड अलाउड के अलग से सत्र हूए उससे मेरी रीड अलाउड की समझ ओर बढी | रीड अलाउड का मतलब क्या है, क्यो रीड अलाउड करना है कैसे रीड अलाउड करे, इस गतिविधि के लिये किताब का चयन कैसे करे, किताब का स्तर, बच्चो की उम्र, ये सब ध्यान में रखकर योजना कैसे करे, किताब का बच्चो के आसपास का संबंध क्या है, अलग किताब हो तो उसे कैसे बच्चो के सामने लाये | इन सब चीज़ों को पूरी जानकारी के साथ सीखने को मिला ओर इस से मुझे बहुत मदद मिली | ये सब जानकारी की मदद से मैं अब बच्चो के साथ रीड अलाउ करने की कोशिश करती हुं |
गतिविधि के लिये किताब का चयन करते समय अब मैं बच्चो की उम्र, विषय ध्यान में रखकर किताब चुनती हुं | ओर पहले खुद पढकर कहानी कैसी है इस पर ध्यान देती हुं | उसके बाद पाठ योजना, उसमे पूर्व गतिविधि, विस्तार गतिविधि, सवाल जवाब, इन सभी पर ध्यान देके योजना बनाने करने की कोशिश करती हुं | साथ ही मेरा किताब पढने का तरीका बदला, किताब के बारे में समझ बडी | मैं कोई भी किताब पढने के बाद उसका मनन करती हुं, सोचती हुं- ये किताब कैसी हैं, लेखक के नजरिये से देखने, समझने की कोशिश करती हुं | ओर ये किताब काल्पनिक है या गैर काल्पनिक हैं, उसकी विषय क्या हो सकता हैं ये सब वाचक ओर लायब्ररीयन के नज़रिये से समझने की कोशिश करती हुं | हम अगर पुरी लगण, मेहनत से कोशिश करे तो सफलता हमारी हैं | ये मैने पढा था और अब मैं यही करने की कोशिश करती रहती हुं |
मुझे यह अवसर देने के लिए बुकवॉर्म टीम को धन्यवाद |
The Journey of becoming a Library Tai
My name is Yuga and I have been working as a library facilitator in Kalpkata Reading Room, Sirsi, District Nagpur (Maharashtra) for the last 3 years. First of all I want to tell you something about myself. I am from a small village where I studied in a Marathi medium school. After I got married, I moved to Sirsi and lived at home as a housewife. Despite being educated, I was sitting at home. Everyone in the house used to go to the farm to work. I did not know how to work in the fields, hence I used to stay at home all day long and was considered idle in everyone’s eyes. Then suddenly Corona came and the lockdown started. Everyone’s life suddenly came to a halt. The Corona period was very difficult for everyone. But it brought me an opportunity to get out of the house.
I joined Kalpakata Library. I had seen the school books since childhood, but when I went to Kalpakta for the first time, I was surprised. This was the first time I came to know that picture story books also exist. And that there is a library in our village which has such beautiful books for children. All this was new and different for everyone in the village. Similarly, all this was new for me too.
What is a children’s story book? I understood only after joining Kalpakta. Different book activities, picture reading, drawing, story reading all happen through books, I came to know after joining Kalpkata. And my journey started from here. There was a desire to work with children and the Kalpkata team.
I received support at every step due to which I continued to learn and my confidence increased. Few months back, I went to a big city like Goa (state) outside Maharashtra for LMS training with my 1 ½ (one and a half) year old daughter. For me going out, being there, meeting new people, talking, all these experiences were new and unforgettable. Tolesh Dada and Sachin Dada supported me to travel and experience the in person workshop.
My first LMS session was in the month of October. That session started with ‘art’.. I was already afraid of the online session, and I got more scared of the art session. But by the end of the session my fear subsided a little. After that there was a book talk session by Ushatai. What is book talk? What Should I Do ? There was a detailed discussion on this and my understanding of Book talk activity increased. Similarly, in every session there was a new activity, new knowledge, new experience and my enthusiasm, curiosity, knowledge confidence was also increasing with time.
We had earlier conducted activities like Read Aloud, Book Talk, Drawing, Painting etc in our library. But after LMS sessions, the way we conducted these activities also changed. Now children are getting inspired by books and stories. Earlier I used to select books for Read Aloud by looking at the book and its illustrations and how long the story is. First, how is the book? But now while selecting the book the theme of the book remains the central point. And planning goes around it- discussion related to that topic, who is being talked about in the story, setting of the story , the title of the story etc. I also think of pre story activities and how to link it to the main story, questions that can be asked during and after the Read Aloud, extension activities, age group of children, relation of the topic with children etc. Because of all these changes children also remain interested in the story. And after the session I also feel happy. All these changes happened through the mentoring received during LMS sessions and sessions taken by Sujata Madam on Read Aloud for the Kalpkata team which enhanced my understanding. I also keep these things in mind while selecting books for other activities.
Just as there were changes in the library and the sessions, similar changes happened inside me also. I was a little timid at first. But now my confidence has increased. In the beginning I was scared of everything like, meeting someone, talking, taking library sessions in front of new people, playing with children, taking up activities, all these fears have now reduced a little.
That’s why when I read aloud in front of the Bookworm team, it was a big thing for me. Now the children also get along with me and now I have a separate identity in the village too. The children, their parents and the rest of the villagers call me ‘Library Ki Tai’. This is a matter of pride for me. The one who had no identity, today is called Pura Gaav ki Tai. This makes me feel happy from within.
Now, the way I read books has also changed and my understanding of the theme is getting better. After reading any book I contemplate and think about it. I try to understand what this book is like from the author’s point of view. And whether this book is fiction or nonfiction, what could be its genre and theme? I try to understand all this from the perspective of the reader and the librarian. If we try with full dedication and hard work, success is ours. I had read this once and now I keep trying to do the same.
Thank you Bookworm team for giving me this opportunity.